किसी गांव में कभी एक विधवा रहती थी , जिसका इकलौता बेटा था .... शक्ति । मां बेटा बहुत ही गरीब थे , बूढ़ी ऊन साफ करती , लोगों के कपड़े सीती , धोती और इस तरह अपना और बेटे का पेट पालती ।
शक्ति जब बड़ा हो गया तो उसकी मां ने कहा .... " बेटे " अब मुझमें और काम करने की ताकत नहीं रही ।
तुम्हें जरूर कोई काम तलाश करना चाहिए।और इस तरह अपनी रोजी - रोटी कमानी चाहिए ।
" अच्छी बात है मां , " शक्ति ने कहा और वह रोजगार की तलाश में निकल पड़ा । वह जहां - तहां भटका , मगर कहीं भी उसे कोई काम नहीं मिला ।
कुछ दिन बाद वह एक सेठ के घर पर पहुंचा । "
सेठ क्या आपको नौकर की जरूरत है ? " शक्ति ने पूछा ।
" हां , जरूरत है " सेठ ने जवाब दिया ।
और उसने उसी समय शक्ति को नौकरी पर रख लिया ।
एक दिन गुजर गया मगर सेठ ने अपने नये नौकर से कुछ भी करने को नहीं कहा । दूसरा दिन भी गुजर गया , मगर सेठ ने उसे किसी तरह का कोई हुक्म नहीं दिया । तीसरा दिन भी गुजर गया , मगर सेठ ने उसकी तरफ बिल्कुल कोई ध्यान न दिया ।
शक्ति को यह सब अजीब लगा । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि सेठ ने उसे किसलिए नौकर रखा है ।
अन्त में उसने सेठ से जाकर पूछा -
" मालिक , आप मुझे कोई काम करने को देंगे न ?
" हां..हां सेठ ने जवाब दिया । कल तुम मेरे साथ चलना।
.अगले दिन सेठ ने शक्ति को एक बड़ी चमड़े का खाल उतारने और इसके बाद चार बड़े - बड़े बोरे लाने और सफर के लिए दो घोड़े तैयार करने की आज्ञा दी ।
एक घोड़े पर बैल की खाल और बोरे लाद दिये गये । दूसरे पर सेठ खुद सवार हुआ और वे चल दिए ।
जब वे बहुत दूर एक पहाड़ के बीच में नीचे पहुंच गए तो सेठ ने घोड़े रोके और शक्ति को बोरे और बैल की खाल उतारने का आदेश दिया । शक्ति ने ऐसा ही किया । तब सेठ ने कहा शक्ति बैल की खाल को उलट कर उस पर लेट जाओ । शक्ति को समझ में न आया कि किस्सा क्या है । मगर उसे मालिक का हुक्म टालने की हिम्मत न हुई । उसने वैसा ही किया ।
सेठ ने शक्ति को खाल में लपेटकर बण्डल - सा बनाया , उसे अच्छी तरह कस दिया और एक चट्टान के पीछे छिप गया ।
कुछ देर बाद दो बड़े - बड़े पक्षी वहां आये । उन्होंने उस खोल को अपनी चोंचों से पकड़ लिया जिससे ताजा मांस की गन्ध आ रही थी और उसे एक ऊंचे पहाड़ की चोटी पर उठा ले गए ।
चोटी पर पहुंचकर पक्षी उस खाल को चोचों और पंजो से नोचने और उसे इधर - उधर खींचने लगे । खाल फट गई और उसमें से शक्ति लुढ़क कर बाहर आ गया । पक्षियों ने उसे देखा तो डरकर उड़ गए और खाल को भी अपने साथ उड़ा ले गए ।
शक्ति उठकर खड़ा हुआ और अपने इर्द - गिर्द देखने लगा । सेठ ने उसे नीचे से देखा तो चिल्लाया ।
" वहां चुप - चाप क्यों खड़े हो ? तुम्हारे पैरों के आस - पास जो रंगीन पत्थर पड़े हैं उन्हें मेरे पास नीचे फेंक दो ।
" शक्ति ने नीचे की तरफ दृष्टि डाली । वहां उसे सचमुच ही बहुत से हीरे इधर - उधर पड़े दिखाई दिए । उनमें लाल , नीलम ,पन्ने और फीरोज थे - हीरे बड़े - बड़े और खुबसूरत थे और धूप में खूब चमक रहे थे ।
शक्ति हीरे उठा - उठा कर नीचे खड़े सेठ के पास फेंकने लगा । शक्ति बहुत देर तक काम करता रहा । अचानक उसके दिमाग में ख्याल आया तो उसका खून सूख गया ।
" मालिक मैं यहां से नीचे कैसे उतरूगा ? " उसने पुकार कर सेठ से पूछा ।
' कुछ और हीरे नीचे फेंक दो " सेठ ने जवाब दिया " मैं बाद में तुम्हें नीचे उतरने का तरीका बताऊँगा ।
" शक्ति ने उस पर विश्वास किया और हीरे नीचे फेंकता रहा । जब बोरे ऊपर तक भर गये तो सेठ ने उन्हें घोड़े पर लाद . दिया ।
" ऐ बेटे " उसने हंसते हुए शक्ति को पुकार कर कहा । अर तो तुम समझ गये न कि मैं अपने नौकरों से क्या काम लेता हूँ । देखो तो वहां पहाड़ पर तुम्हारे जैसे कितने और हैं।
इतना कहकर सेठ अपने घोड़ों को हांक ले गया । शक्ति पहाड़ पर खड़ा हो गया । वह नीचे उतरने के रास्ते को तलाश करने लगा । मगर वहां तो सिर्फ खड्ड - खाइयां थी और हर जगह इन्सानी हडिडयां बिखड़ी पड़ी थी । ये उन लोगों की हड्डियां थी जो शक्ति की तरह ही सेठ के नौकर रहे थे । शक्ति कांप उठा ।
अचानक उसे अपने ऊपर पंखों की जोरदार फड़फड़ाहट सुनाई दी और इसके पहले कि वह मर भी सके । एक बड़ा सा उकाव उस पर झपटा । वह शक्ति के टुकड़े करने ही वाला था । मगर शक्ति ने अपने होश हवास कायम रखे और अपने दोनों हाथों से उकाव के पंजे पकड़ लिए और उन्हें कसकर पकड़े रहा । उकाव जोर से चीखा । उड़ा और शक्ति को नीचे झटके देने के लिए चक्कर काटने लगा । आखिर वह थककर जमीन पर जा गिरा और जब शक्ति ने उसे छोड़ा तो वह उड़ गया ।
इ स तरह शक्ति मौत के भयानक मुंह से सही - सलामत निकल आया । वह बाजार में जाकर फिर से काम की तलाश करने लगा । अचानक उसने उसी सेठ को अपने पुराने मालिक को अपनी तरफ आते देखा ।
" सेठ क्या आपको नौकर की जरूरत है ? " शक्ति ने पूछा । सेठ के दिमाग में तो भूलकर भी यह बात नही आ सकती थी कि उसका कोई नौकर जिन्दा भी लौटकर आ सकता है । ऐसा तो पहले कभी हुआ ही नही था । इसलिए उसने शक्ति को कोई दूसरा ही समझा और उसे साथ घर ले गया ।
कुछ समय बाद सेठ ने शक्ति को एक बैल की खाल लाने और उसके बाद दो घोड़े तैयार करने और चार बोरे लाने का हुक्म दिया ।
वे उसी पहाड़ की तरफ रवाना हो गए । वहां पुहंचकर सेठ ने पहले की ही भांति शक्ति की खाल पर लेटने और उसे अपने गिर्द लपेट लेने के लिए कहा ।
' मुझे करके दिखाइए , मैं ठीक से समझा नहीं । " शक्ति ने कहा ।
" इसमें समझाने की बात ही क्या है ? देखो ऐसे करना चाहिए । सेठ ने जवाब दिया और फैलाई खाल पर लेट गया ।
" तब शक्ति ने तुरन्त सेठ को लपेटकर बंडल बना दिया । उसे कसकर बांधा और एक ओर को छिपकर खड़ा हो गया ।
' अरे मेरे बेटे " सेठ चिल्लाया । " यह तुमने मेरे साथ क्या किया है ? '
मगर उसी समय वही दो बड़े - बड़े पक्षी उड़ते हुए आये और बैल की खाल को उड़ाकर पहाड़ की चोटी पर ले गए । वहां पहुँचकर वे खाल को चोचों और पंजों से फाड़ने लगे । मगर बीच में सेठ को लिपटा देखकर डर गये और उड़ गये । सेठ लड़खड़ाता हुआ उठकर खड़ा हो गया ।
" सेठ , वक्त बरबाद मत करो । हीरे नीचे फेंको जैसे मैंने किया था , " शक्ति ने नीचे से पुकार कर कहा । अब सेठ उसे पहचान गया और डर एवं गुस्से से कांपने लगा ।
" तुम पहाड़ से नीचे कैसे उतरे ? " सेठ ने शक्ति से पूछा । "
" जल्दी से मुझे जवाब दो । "
" कुछ हीरे नीचे फेंक दो।जब मेरे पास काफी हो जायेंगे तो मैं तुम्हे बात दूंगा कि पहाड़ से नीचे कैसे उतरा जा सकता है , शक्ति ने जवाब दिया ।
सेठ हीरे नीचे फेंकने लगा और शक्ति उन्हें जल्दी - जल्दी उठाने लगा । जब बोरे भर गए तो शक्ति ने उन्हें घोड़ों पर लाद दिया ।
" सेठ अब जरा अपने आस - पास दृष्टि डालो , " शक्ति ने पुकार कर कहा।जिन आदमियों को तुमने मौत के मुंह में धकेला था । उनकी हड्डिया सभी जगह बिखरी पड़ी है । तुम नीचे उतरने का रास्ता उन्हीं से क्यों नही पूछते ? जहां तक मेरा सवाल है । मैं तो अपने घर चला ।
इतना कहकर शक्ति ने घोड़ों का मुंह मोड़ा और अपने घर की ओर चल दिया ।
सेठ पहाड़ की चोटी पर इधर - उधर दौड़ता हुआ धमकियां देता और चीखता चिल्लाता रहा मगर व्यर्थ । यहाँ उसकी आवाज सुनने वाला ही कौन था और अन्त में उसका वही हाल हुआ जैसा अनेक लोगों का उसके भुलावे में आकर हुआ था ।
सच है दृष्टता का फल अवश्य मिलता है ।
धन्यवाद❤
जय हिन्द जय भारत।
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