राजा वीरभद्र एक बड़े राज्य का राजा था । उसे प्रजा की कोई चिंता नहीं थी । प्रजा बड़े कष्ट में जी रही थी । कोई राजा से मिल तक नहीं सकता था ।
उसी राज्य में सुदास नामक एक व्यापारी रहता था । वह गरीबों की सहायता के लिए हरदम तैयार रहता था । विपत्ति आने पर लोग राजा के बदले सुदास के पास जाना पसंद करते थे ।
दरबारियों ने यह बात राजा को बताई । राजा के मन में उत्सुकता जागी कि क्या सचमुच कोई इतना दानी हो सकता है । उसने सुदास की परीक्षा लेने की ठानी ।
एक दिन वीरभद्र ने वेश बदला और सुदास के गाँव जा पहुंचा । तभी दो आदमी घोड़े पर सवार होकर आते दिखाई दिए । लोगों ने बताया कि सुदास आ रहा है । राजा उसके रास्ते में खड़ा हो गया । गिड़गिड़ाकर सुदास से बोला- " मैं और मेरा भाई , बहुत दूर से आ रहे हैं । वह बुरी तरह थक गया है । कृपया आप अपना घोड़ा दे दें । मैं उसे पहुंचाकर आपका घोड़ा वापस दे जाऊँगा । "
सुदास ने बिना किसी झिझक के अपना घोड़ा वीरभद्र को दे दिया । चकित वीरभद्र घोड़ा लेकर चला गया ।
अगले दिन राजा ने साधु का वेश बनाया और सुदास के घर जा पहुँचा । उसका घर बड़ा साधारण था । सुदास उसे आदर सहित घर के अंदर ले गया । उसके चरण धोने लगा । साधु बने राजा से रहा नहीं गया । उसने पूछा- “ तुम इतने बड़े व्यापारी हो । तुम्हारे पास खूब धन है । फिर भी तुम ऐसे साधारण घर में रहते हो और साधारण वस्त्र पहनते हो ?
इस पर सुदास मुसकराकर बोला- " महाराज ! रहने के लिए यह घर और पहनने के लिए साधारण वस्त्र काफी होते हैं । हमारे राज्य में कई ऐसे लोग हैं , जिनके पास न रहने को घर है और न पहनने को कपड़े । मैं जितना धन कमाता हूँ , उनकी सेवा में लगा देता हूँ । जिस दिन सभी के पास रहने को धर हो जाएगा , शायद उस दिन मैं इससे बड़ा मकान हो ? " बनवा सकूँगा । "
यह सुनकर राजा वीरभद्र को स्वयं पर बहुत शर्म आई । उसकीआँखों में आँसू आ गए । उसने सुदास को अपना परिचय दिया । सुदास ने उसे गले लगा लिया । राजा ने उसे वचन दिया कि अब वह प्रजा की भलाई में ही अपना जीवन लगा देगा ।
सिख :इस कहानी से हमें यंहा शिक्षा मिलती हे की हमें हमेशा दुसरो की मदद करनी चाहिये और हमें हमारा कर्तव्य नहीं भूलना चाहिये।
धन्यवाद ❤
जय हिन्द जय भारत।
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